कल्याण येथील अग्रवाल कला, वाणिज्य आणि विज्ञान महाविद्यालय आणि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यांच्या संयुक्त विद्यमाने नुकतेच ‘ब्लॉगविश्वातील हिंदी
’ या विषयावर दोन दिवसीय राष्ट्रीय चर्चासत्र
आयोजित करण्यात आले होते. सदर चर्चा सत्रात मी केलेल्या भाषणाचा गोषवारा इथे देत आहे.
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हजारों सालोंसे मनुष्य अपनी मन की भावनाऍं दूसरे व्यक्ति के साथ बाटता आया हैं। जैसे जैसे समाज प्रगत होते गया, पहले की सीमित साधनों मे बढोत्तरी होते गयी। खत, अखबार, रेडीओ, दूरदर्शन जैसे साधन पाकर, एक दूसरे के विचार समझने मे सुविधा होने लगी। लेकिन इन सभी साधनोंका इस्तेमाल करना हर किसी के बस की बात नहीं थी। बल्की आज भी दूसरों के सामने हम लोग अपनी बात इन साधनो द्वारा आसानीसे नहीं रख सकते हैं। जब इंटरनेट सुविधा प्राप्त हुई और घर-घर मे इस महाजाल का उपयोग होने लगा तबसे घर बैठे आप अपनी बात लोगोंके सामने रखने मे सक्षम हो गये। इंटरनेट ने सबको एक जादूई दुनिया मे ला खडा किया। दुनियाके एक कोने मे बैठकर भेजा हुवा मेल दूसरे जगह पलक झपकते ही पहूचने लगा। यह काम बडी आसानी से होने लगा।
कई बातें ऎसी होती हैं, जो हम सब लोगों कों बताना चाहते हैं, सबके सामने रखना चाहते हैं। इ-मेल भेजनेसे यह मक्सद पूरा नहीं होता था। इ-मेल के जरिये हम कुछ चुने हुये लोगोंके साथ ही संपर्क कर सकते हैं। अपनी बात दुनिया के सामने रखने के लिये ब्लॉग का एक ऎसा मंच सामने आय जिसने सारी मुश्किले हल कर दी। फिर भी इसमे संम्पर्क की भाषा अंग्रेजी थी। भारत जैसे देश में आम आदमी आपस मे बात करते समय बहोतसारी भाषाऑंका उपयोग करता हैं। संगणकपर यह भाषा लिखने मे कई कठिनाईया थी। शुरुवातमे अपनी भाषा लिखने के लिये अन्य प्रणाली तथा फॉन्ट का उपयोग होने लगा। मराठी, हिंदी, बंगाली, तमील, कन्नड, मल्याळी आदी लिखने मे बडी मशक्कत करनी पडती थी। इतनी मेहनत करने के बावजूद जब हम यह फाईल दूसरे आदमी को भेजते थे तब जादातर लोग उसे पढ नहीं पाते थे क्योंकी उनके संगणकपर इस फाईल मे इस्तेमाल किया गया फॉन्ट उपलब्द्ध नहीं होता था। ब्लॉगके भी वही हाल थे। यूनिकोड का आविष्कार होने से यह मुश्कील दूर हो गयी। चाहे कोई भी प्लैटफॉर्म हो, चाहे कोई भी प्रोग्राम हो, चाहे कोई भी भाषा हो, यूनिकोड से एक ऐसा अकेला सॉफ्टवेयर उत्पाद या अकेला वेबसाइट मिल जाता हैं, जिसे री-इंजीनियरिंग के बिना विभिन्न मंचो, भाषाओं और देशों में उपयोग किया जा सकता हैं।
युनिकोड जैसे जादूयी प्रणालीने भारतीय भाषाओंका रास्ता प्रशस्थ किया। अभिजनोंको दुनियाके सामने व्यक्त होने का एक सरल साधन मिल गया। ब्लॉग एक ऎसा साधन हैं जो अन्य माध्यमों जैसा संपादित नहीं होता हैं। एसिलीये बिनाकोई हिचकीचाहट से हम आपनी बात सबके सामने खुलेआम रख सकते हैं। मराठी एक ऎसी भाषा हैं जो जगमे सबसे अधिक बोली जाने वाली पन्द्रहवी भाषा हैं। जैसेही ब्लॉगका प्लॅटफॉर्म उपलब्ध हो गया, महाजाल मे मराठी ब्लॉगकी होड सी लग गयी। कथा, कविता, कृषी, खेल-जगत, गझल, गायकी, चित्रपट, जीवनानुभव, विज्ञान और तंत्रज्ञान, सफरनामा, भाषा, ललित साहित्य, राजनिती, अर्थ-व्यवहार, इंटरनेट, इलेक्ट्रॉनिक , उद्योजकता, मोबाइल, व्यक्तिमत्व विकास, व्यवस्थापन आदी विभिन्न विषयोपर हजारो ब्लॉग शुरू हो गये। लाखो लोग रोज यह ब्लॉग पढते हैं। अभी नया लेखन क्या हुवा हैं? यह समझपाना यह एक समस्या बन गयी। लेकिन इंटरनेट मे एक अच्छा हैं, यहा समस्या का समाधान जल्दी हो जाता हैं। इस बारे मे भी वैसा ही हुवा, “मराठी ब्लॉग विश्व
“, “ब्लॉगकट्टा
”, “मराठीसूची
”, “मराठी कॉर्नर
” “ मराठी ब्लॉग जगत
” आदी, ऎसे संकेतस्थल बन गये जो हर नये लेखन को प्रसिद्ध करने लगे। उनका वर्गिकरणर करने लगे, उनका गुणांकन करने लगे। एक ब्लॉग पर अनेक विषयोंपर लिखना शुरू हो गया वैसाही एक ही विषय को लेकर कई ब्लॉग शुरू हो गये। “नेटभेट
”, “सोबत
” आदी टेक्नॉलॉजी इस विषयपर लिखनेवाले ब्लॉग सभीको संगणक तंत्रज्ञान तथा वेबसाईट और ब्लॉग के बारे मे ताजा तथा उपयुक्त जानकारी देते हैं। “गझलकार
” यह गझल को समर्पीत ब्लॉग हैं, “त्यांची कविता माझे गाणे
” ईस ब्लॉग पर प्रमोद देव साहबने कई पद्य रचनाओंको चाल मे बांधा हैं। “डोक्यात भु्णभुणणारा मराठी भुंगा
” ने हाल ही मे दस लाख से जादा वाचकोंका प्रेम प्राप्त किया हैं। अन्य विषयों के सीवा इस ब्लॉगपर मराठी कथाओं के कई संग्रह प्रकाशीत किये गये हैं। रोहन चौधरीजी का “माझे भारत भ्रमण
” नामक ब्लॉग आपको भारतके लडाख जैसे प्रांतकी सफर करवाता हैं। उनकाही “माझी सह्यभ्रमंती
” यह ब्लॉग महाराष्ट्रके कई दुर्ग और किलोंका दर्शन करवाते हैं। “आतल्यासहित माणूस
” नीरजा पटवर्धनजी का ब्लॉग मनकी तरल भावनाऑंको व्यक्त करता हैं। वैज्ञानीक आनंद घारेजी का “आनंदघन
” ब्लॉग भारतीय विशेष करके महाराष्ट्राके त्योहारों के बारेमे वाचक को ज्ञान देता हैं।
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पुरे महाजाल मे कई ऎसे ब्लॉग हैं और रोज जुडते जा रहे हैं, की सभी के बारेमे कहना असंभवसा हैं, लेकीन “my नीती
” यह नीतीन पोतदारजी के ब्लॉग के बारेमे जानने के पहले हम आगे नहीं जा सकते हैं। एक कॉर्पोरेट लॉयर
होनेके कारण अपने काम मे व्यस्त रहते हुये भी वह अपने ब्लॉग पर निरंतर लिखते रहते हैं। अपने ज्ञान और अनुभव का फायदा युवावर्ग को हो यह उद्देश मन मे रखके वह उद्योग, व्यवसाय और करिअर के बारमे विचार रखते आये हैं। समाज मे जो आच्छाईया हैं उसको सामने लाने का काम करते हैं। उद्योग के बारेमे बहुत कुछ कहनेवाला “प्रगतीचा एक्सप्रेस वे” यह उनकी किताब हालही मे प्रकाशीत हुई हैं।
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महाराष्ट्र में दिवाली अंकों की पूरानी परंपरा रही हैं। मुद्रित अंकों के साथ अब इ-अंक भी प्रकाशीत होने लगे हैं। मोगरा फुलला
यह कांचन कराई जी का संपादित किया हुवा दिवाली अंक हैं वैसा ही दिपज्योती
यह जालरंग प्रकाशन का अंक क्रांती सडेकर जी ने संपादित किया हैं। यह एक नया कदम हैं जो पूरानी परंपरा कों कायम रखनेमे सक्षम हो गया हैं।
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“दिसा माजी काहिते लिहावे” अर्थात रोज कुछना कुछ लिखनेका प्रयास करे यह संतश्रेष्ठ रामदास स्वामीजी का प्रसिद्ध वचन हैं। लगातार लिखनेसे धिरे धिरे लिखनेमे सहजता आती हैं यह मै अपने खुद के अनुभव से कह सकता हु। सन २००८ मे मुंबईपर हुवे आतंकवादी हमलों ने मुझे लिखने को मजबूर किया और तबसे लेके आजतक मै “नरेंद्र प्रभू
” यह मेरे बॉगपर लिखता आया हूं। महाजाल मे होने के कारण ब्लॉग लेखक और वाचको के बिचमे तुरंत संवाद हो सकता हैं। कई वाचक लेखपर अपनी टिप्पणी करते हैं। अपने लेखनमे लोग कितनी रुची रखते हैं और उनका अभिप्राय क्या हैं यह जानकर लेखक अपने आगे के लेखनपर आवश्यक सुधार कर सकता हैं तथा ऎसे अभिप्राय से उम्मीद भी बढती हैं।
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महाराष्ट्र मे बहोत सारे साहित्य संमेलन होते रहते हैं। उसी तरह अभी मराठी ब्लॉगर्स भी एक दूसरे को मिलने लगे हैं। विगत साल मे पुने और मुंबई मे ऎसे संमेलन
हुये थे। “मोगरा फुलला
” की कांचन कराई और “काय वाट्टेल ते
” के महेंद्र कुलकर्णी साहबने इन संमेलनों के आयोजन मे बडी भुमिका निभाई थी। ब्लॉगींग, तकनीकी कठिनाईया, क्या लिखा जाय? ऎसे कयी विषयोंके बारेमे इसमे पहल की गयी। आजकल के व्यस्त जीवन मे एकही विषय मे रुचि रखनेवाले दोस्त मिल पाना मुश्किल हो गया हैं लेकिन ब्लॉग के जरिये ऎसे दोस्त मिलपाना संभव हैं।
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महाजाल मे होने के कारण ब्लॉग को सीमाओं का बंधन नहीं हैं। मराठी ब्लॉग पुरे दुनिया में पढे जाते हैं वैसे विश्व के सभी जगहसे लिखे भी जाते हैं। ऎसा होने के बावजूद मराठी ब्लॉगपर विज्ञापन न के बराबर हैं। गुगल एड जैसी एजंसीयो के तरफसे विज्ञापन अंग्रेजी ब्लॉग तथा वेब साईट को ही दिये जाते हैं। आज ३००० के उपर ऎसे माराठी ब्लॉगर्स हैं जो हमेशा लिखते रहते हैं या जिनके ब्लॉगपर तीनसौ से जादा पोस्ट लिखे गये हैं। ब्लॉग आजकी दुनिया की खुली किताब हैं जो शुरू तो हुई लेकिन खतम होने की संभावना निकट भविष्य मे नहीं हैं। आधुनिक विज्ञानने मानको दि हुई यह देन हैं, जिसका होई अंत नहीं हैं।
नरेंद्र नारायण प्रभू
मुंबई
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