19 July, 2021

युटी (Union Territory) अच्छा है?

अपुर्व उत्सव

सप्टेंबर २०१९ ची टूर ही टूर लिडर म्हणून लडाखची शेवटची सफर झाली. नंतर कोवीड १९ ने सगळेच मार्ग बाधीत केले. (त्यातही आम्ही डिसेंबर २० मध्ये लडाखला गेलोच त्याची एक पोस्ट टाकिनच.) तर त्या लडाख केंद्र शाशीत झाल्या नंतर मी तिथल्या लोकांशी केलेला संवाद खाली दिला आहे.     

१६ सप्टेंबर २०१९

पहाटे चार वाजता गो एअरच्या विमानाने मुंबई सोडली आणि अडीज तासांनी लडाखची धरती सोनेरी सुर्यकिरणात माखून निघालेली दिसायला लागली. लडाखचं विहंगम दृष्य पाहून नवख्याला तो रुक्ष प्रदेश वाटेल, पण मला त्याचे अंतरंग चांगलेच परिचयाचे होते. या सप्टेंबरमध्ये १९व्या वेळी जातानाही मला त्याचं तेव्हढंच आकर्षण होतं जेवढं आत्माराम परब यांच्या सोबत दिलेल्या पहिल्या लडाख भेटीच्या वेळी होतं. मात्र कलम ३७० हटवल्यानंतर ची ही माझी पहिली भेट. या वेळी नेहमीप्रमाणे श्रीनगरला न जाता मुंबईहून थेट लेह गाठलं. हवेत चांगलाच गारठा होता. लडाखच्या हिवाळ्याला नुकतीच सुरूवात झाली होती. विमानतळाबाहेर नुरबू हा तरुण लडाखी मित्र स्वागताला हजर होता. विमानतळावर नेहमीचा उत्साह आणि आपुलकीचा भाव जाणवत होता. नुरबू बरोबर लेह गाठलं. हॉटेल मुन्शी कॉन्टीनेंटलचे व्यवस्थापक राजन शर्मा हसत मुखाने सामोरे आले. कुठेही कलम ३७० हटवल्याचा तणाव किंवा कुठलाच वेगळेपणा जाणवत नव्हता. लेह आपल्याच नादात मस्त होतं.

थोडी विश्रांती झाल्यावर स्वागत कक्षात राजनजींशी गप्पा रंगल्या असतानाच तिथे बसलेल्या एका इसमाकडे लक्ष गेलं. थोड्याच वेळात “कैसे हो?” विचारत त्याच्याशी गप्पांना सुरवात झाली. हा माणूस भारतीय भौगोलिक सर्वेक्षण विभागाच्या अधिकार्‍यांना न्यायला आलेल्या टॅक्सीचा चालक होता. तो कधीही निघून जाईल म्हणून मी लगेच विषयाला हात घातला, अर्थातच मला लडाखला केंद्रशाशित प्रदेश बनवलं गेलं त्याबद्दल त्याचं मत विचारायचं होतं.

मी:   युटी (Union Territory) अच्छा है?

तो:    हा! अच्छाही है हमारे लिए।

मी:   क्यु ?

तो:   अब हमे श्रीनगर नही जाना पडेगा. इधरही अच्छा स्कुल खुलेगा।

मी:   कितने बच्चे है आपके?                     

तो:    छे।

मी:   किधर रहते हो?

तो:    इधर ही, लेह।

मी:   गाव किधर है आपका?

तो:    तुरतुक।

मी:   नाम क्या है?

तो:    हसन

मी:   सब इधर पढते है?

हसन: नही, दो गावमे है।

मी:   उधर स्कुल है?

हसन: हा... है, सेना चलाती है।

मी:   कितना खर्चा आता है,

हसन: जादा कुछ नही, सब सेना उठाती है।

मी:   सरहद के उसपार आना जाना होता है?

हसन: नही, वहा हमारे रिश्तेदार है, कभी मिलना है तो बाघा बॉर्डर से आते है।

मी:   हम उसे अटारी बॉर्डर कहते है।

हसन: वही, उधरसे आते है, बडी तकलिफ़ मे है, बहोत महंगाई है उधर, कुछ नही मिलता.

मी:   आपका एमपी कौन है?

हसन: जेटीएन (जामयांग त्सेरींग नामग्याल)

मी:   उधरभी वही?

हसन: हा पुरे लडाख मे एकही खासदार है।      

मी:   वह कुछ करेगा आपके लिये?

हसन: हा करेगा ना!

हसन नाव सांगितलं नसतं तर तो थेट लडाखी बौद्ध दिसत होता. पहिल्याच दिवशी जमिनी हकिकत समजत होती.

१७ सप्टेंबर २०१९

सकाळी लवकर उठून कारगिलला जायला निघालो. वाटेत पथ्थरसाहेब गुरूव्दाराला थांबलो. भारतिय जवानांकडून चालवल्या गेलेल्या या शिखांच्या पवित्र गुरुव्दारात प्रसाद तर मिळालाच पण तिथल्या जवानांकडून नास्ता घेण्यासाठीही आग्रह होत होता. परंतू तिथे न थांबता पुढे निघालो. आता थेट द्रासचं कारगिल युद्ध स्मारक गाठायचं होतं. मॅग्नेटीक हिल, सिंधू-झंस्कार संगम, मुनलॅंड, लामायुरू, फोटू-ला, नमकि-ला, मुलबेक करत कारगिलला पोहोचलो. कारगिल बाजारपेठेत थोडा ट्राफीक जाम होता. सगळी बाजारपेठ गजबजलेली होती. ती मागे सारत द्रासा गावातलं कारगिल युद्ध स्मारक गाठलं. स्मारकापुढे नतमस्तक होऊन पुन्हा कारगिलला हॉटेलमध्ये आलो. सगळी आवराआवर झाल्यावर हॉटेल मालक सादीकभाईंची (यांनी कारगिल युद्धाच्या वेळी भारतीय नागरीकांना, पत्रकारांना, सरकारी अधिकार्‍यांना आपल्या हॉटेल्मध्ये आसरा दिला होता.) भेट घेतली. सलाम-दुवा झाल्यानंतर रात्री निवांतपणे बोलायला सुरूवात केली.      

मी:         युटी (Union Territory) अच्छा है?

सादीकभाई:   अभी तो सब असमंजस मे है।

मी:         क्यो?

सादीकभाई:   आगे क्या होता है देखते है!   

मी:         क्यो? कुछ होने वाला है?

सादीकभाई:   नही... वैसी बात नही है। अभी सब शांती तो है, लेकिन श्रीनगर मे सब पाबंदी हटने के बाद मालूम पडेगा। कुछ लोग जो अपने नेता की बात मानते है वह हालात बिघाडनेकी कोशीश करेंगे। ३७० हटनेके बाद हॉटेल खाली पडा है। धंदा चौपट हुवा है। अब देखते है आगे क्या होगा। १९९० मे श्रीनगर मे मिलिटंसी शुरू हो गयी। लगातार पंद्रह साल हालात बिघडते चले गये। यहा कोई नही आता था। फीर २००४ से कुछ सुधार होने लगा। १५ साल मिलिटंसीने खाये, उसके आगे यह एक साल कुछ नही है। लेकीन वादे पुरे होने चाहीये। लोग बेचैन है।

मी:         बाकी हॉटेलवाले क्या कह रहे है?

सादीकभाई:   सब देखना चाहते है, आगे क्या होगा?

मी:         आपको भरोसा क्यो नही है की सब अच्छा होगा? 

सादीकभाई:   क्युकी ७० साल मे कुछ नही हुवा, अब मोदिजी कह रहे है... होगा। सब देखना चाहते है। होगा तभी मान जायंगे। बोलने से क्या होता है? जमिनी हालात सुधरने चाहिये। अब श्रीनगरसे यहा कोई नही आता है। मतलब सैलानी नही आते है।

मी:         हम लोग भी श्रीनगरसे आनेवाले थे, लेकीन डायरेक्ट लेह आये और अब यहा कारगिल पधारे है।     

सादीकभाई:   इंशाअल्ला सब ठिक होगा।

मी:         होना चाहिये। हॉटेल ओनर्स असोसियशन क्या कर रहा है? कुछ रिप्रेझेंटेशन दिया की नही?      

सादीकभाई:   देंगे तो भी किसको देंगे?

मी:         अभी ले. गव्हर्नर आजायेंगे उनको देना।

सादीकभाई:   अब सब अगले सिझन के इंतजार मे है।  

१८ सप्टेंबर २०१९

कारगिलहून निघालो, वाटेत खालसरला थोडं थांबलो, अक्रोड घेतले आणि पुन्हा लेह गाठलं. सगळीकडे सामान्य व्यवहार सुरू होते. कसलाही तणाव नव्हता.

१९ सप्टेंबर २०१९

आज सिंधू व्हालीत फिरायचं होतं. थिकसे मॉनेस्ट्रीला गेलो, तिथे बौद्ध धर्मगुरू दलायी लामा यायचे होतो म्हणून लगबग चालली होती. मनाली-लेह मार्गावर नेहमी प्रमाणे वाहतूल सुरू होती. लेह बाजार, हॉल-ऑफ-फेमला पर्यटक नेहमी सारखेच गर्दी करून होते.

२० सप्टेंबर २०१९

नुब्रा व्हालीत प्रवेश करायच्याआधी खारडुंग-ला हा जगातला सर्वोच्य मोटरेबल रोडवरचा पास  सामोरा येतो. तिथे पर्यटकांची गर्दी होती. नुब्रा व्हालीत स्थिती सामान्य होती.

२१ सप्टेंबर २०१९

ब्रॉड बॅन्डची लाईन टाकण्याचं काम 

हुसेन बेग, तुरतूक 
काही पर्यटक मित्र नुब्रा मधून तुरतूकला जायला निघाले. आम्ही शेयॉक मार्गे पॅगॉन्ग लेक कडे निघालो. वाटेत ब्रॉड बॅन्डची लाईन टाकण्याचं काम जोरात सुरू होतं. विकासाची पावलं दिसत होती. भारत-तिबेट सिमेवर खडा पहारा देणारे आयटीबीपीचे जवान सिमेकडे निघाले होते. वाटेत लागणरी टांगसे, शक्ती, कारू ही गावं आणि तिथले लडाखी नेहमीप्रमाणे आपापल्या कामात मग्न होते.

२२ सप्टेंबर २०१९

आज लेह जवळच्या साबू गावात फेरफटका मारला. इथे निवृत्त शिक्षक श्री. त्सेरींग नुरबू यांची भेट घेतली. गेली कित्येक वर्ष आपलं निवृत्त जीवन शांतपणे जगणार्‍या या जाणत्या लडाखी माणसाला बोलतं करण्यासाठी तोच प्रश्न विचारला:   

मी:         युटी (Union Territory) अच्छा है?

त्सेरींग नुरबू:  हा बहोत अच्छा है?

मी:         क्यो ?

त्सेरींग नुरबू:  यह हमारी पहलेसेही डिमांड रही है। हमारी भाषा, संकृती, परंपरा, त्योहार, शादी, चाल-चलन आदी सब के सब श्रीनगर व्हाली से अलग है। भारत देश को  आजादी मिलनेके पहले से हम अलग ही थे। हमे किसीने पुछा तक नही की हमे किधर जाना है? हमे व्हाली से जबरन जोड दिया गया। सत्तर साल बित गये हमे न्याय की तलाश थी। अब हमे न्याय मिलेगा। हम खुद हमारा सरकार चलायेंगे। किसीके सामने हाथ फैलानेकी जरूरत नही है। अबा हमारे साथ जाजती नही होगी। भेदभाव नही होगा।               

मी:         क्या जाजती होती थी? कैसा भेदभाव?

त्सेरींग नुरबू: एकही PRC की बात देखो।   

मी:         PRC ख्या है?

त्सेरींग नुरबू: परमनंट रेसिडेंट सर्टीफिकेट मतलब PRC, यह नही होगा तो सरकारी नौकरी नही मिल सकती। हमे पिआरसी पाने के लिये बहुतही लडना पडता था। चार पिढीयोंका नाम सरकारी जमिन-खाता मे होगा तोही किसीभी लडाखी को पिआरसी मिलता था वर्ना नही। मा का नाम होने से भी नही मिलता था। कोई घर जमायी किया और वह हिमाचल प्रदेश या तिबेट से होगा तो उसे पिआरसी नही मिलता था। इससे बहोतही दिक्कत होती थी। वही दुसरी ओर पिओके से कोई भी आया और उसने व्हालीवाली लडकीसे शादी की तो उसे तुरंत  पिआरसी मिलता था। यह सरासर अन्याय ही है। अब वह दूर हो गया है।                 

मी:         अब विकास होगा? आप यह मनते है?

त्सेरींग नुरबू: होगा... जरूर होगा। उन्होने... मोदीजीने जो कहा वह किया है। हमे उनपर भरोसा है। उन्होने युटी की बात की थी, वह दे दिया। इतना आसान नही था वह। फिर भी हुवा, युटी होनेसे सब लोग बहोत खुश है। अब विकास होगा। वह भी दिन थे जब मै किसी कारण या काम से श्रीनगर जाता था। वहा पक्की सडक देखता था, ब्रिज देखता था तो मन ही मन मे बहोत दुख होता था। हमारे गाव मे यह क्यो नही है?  यहा, लडाख मे ना पक्की सडक थी, ना ब्रिज। हम लोग पॉपलर के पेड, खंबे डालकर ही काम चलाते थे। कच्ची सडक थी। सब पैसा व्हालीवाले खा जाते थे।

            श्रीनगरमे जाते थे तो वहा हमारे साथ दुय्यम व्यवहार होता था। बस मे से उतरने के बाद हमारे पिछे-पिछे दो-तीन कश्मीरी चलने लगते थे। हमे “बोट कनस्पा, बोट कनस्पा” करके पुकारते थे, यह एक गाली है। आखो मी आसू आते थे। कुछ बोला तो मारपीट पर उतर आते थे। सब सहना पडता था। अब हम सही मायने मे आझाद हो गये है। हमे युटी मिल गया है।             

शिक्षक श्री. त्सेरींग नुरबू

असेंब्लीमे हमे सिर्फ २% प्रतिनिधीत्व था। हमे कौन पुछता था? कोई नही। बहोतही बुरी हालत थी हमारी।

            हमे, हमारे बच्चोंको स्कुल मे जबरन उर्दू सिखना पडता था। हमारा क्या ताल्लूख था उर्दू से? हम पर वह थोपी गयी थी। फिर यहा प्रायवेट स्कुल खोले गये, जिसमे उर्दू से छुटकारा मिल गया। हमारे बच्चे वहा सिखने लगे।

मी:         यह सब ठिक है, पर विकास कैसे होगा?  

त्सेरींग नुरबू: क्यु नही होगा? अब दिल्ली से यहा डायरेक्ट पैसा आयेगा। विकास होगा। अब लुटपाट नही होगी। हमारी सरकार होगी, ले.गव्हर्नर होगा। दादरा नगर-हवेली, पॉन्डेचरी मे विकास हुवा है। यहा भी होगा। सरकार अब ध्यान दे रही है। दिल्ली मे नयी सरकार बनतेही रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह यहा पधारे थे। प्रधान मंत्री मोदी खुद चार बार यहा आये है। उन्होने जो कहा वह किया। अब हमारा हक कोई नही छिन सकता।             


त्सेरींग नुरबू भारावलेले होते. किती सहन केलं त्यांनी. १९६३ साली पॅगॉन्ग लेक जवळच्या शाळेत त्याची बदली झाली होती. लेहहून चालत निघाले की तीन दिवसांनी ते पॅगॉन्गला पोचायचे. मधे भिषण अशा चांगला पासचा त्याना सामना करावा लागत होता. आज त्यांची सुन तिकडच्या शाळेत आहे. कालच आम्ही पॅगॉन्गला जाऊन आलो होतो. रस्ता रुंदी करणाचं काम जोरात सुरू होतं. विकास लडाखच्या दारात, दर्‍या खोर्‍यात पोचला आहे.

२३ सप्टेंबर २०१९

दुपारचा साडे अकरा बाराचा सुमार होता. शांती स्तूपाच्या पायथ्याशी असलेल्या द पॅलेसमध्ये थोड काम होतं. त्या हॉटेलच्या दारात भारतीय जनता पार्टीचा झेंडा लावलेली मोटार उभी दिसली. हळू हळू आणखी वहानं आली. त्या मोटारीच्या चालकाला बोलतं केलं.            

मी:   आपका नाम क्या है?            

तो:    डोरजे.      

मी:   डोरजे यहा कैसी रॅली है?

डोरजे: हम पंचायत चुनाव जित गये है।

मी:   तो क्या हुवा, इतना जल्लोश क्यु है?           

डोरजे: युटी मिला गया है? 

मी:   युटी (Union Territory) अच्छा है? 

डोरजे: हा अच्छा है। 

मी:  उससे क्या होगा?

डोरजे: दिल्ली से यहा डायरेक्ट पैसा आयेगा।

मी:   उस पैसेसे क्या होगा?  

डोरजे: स्कुल बनेगा, कॉलेज बनेगा, अस्पताल बनेगा। 

मी:   कौन बनायेगा?

डोरजे: मोदीजी, अमित शहाजी  

मी:   यहा कोई नही है?

डोरजे: है ना, हमारा जेटीएन  (जामयांग त्सेरींग नामग्याल) है।    


थोड्याच वेळात लेहच्या मॉल रोडवर लडाखचे खाजदार जामयांग नामग्याल मिरवणूकीने येताना दिसले. एक छोटीशी सभा झाली. भारत माता की जय चा जय जयकार झाला. वातावरणात कमालीचा उत्साह होता. 

२४ सप्टेंबर २०१९

लेह विमनतळावरून विमानाने श्रीनगरकडे झेप घेतली. श्रीनगरच्या विमानतळावर उतरताना खिडकीच्या झडपा बंद करण्याच्या सुचना दिल्या गेल्या. विमानात अंधार पसरला. बाहेर उजेड असताना आत मात्र अंधार होता. हा केलेला अंधार होता. श्रीनगरमध्ये कित्येक वर्षं कोंबडा झाकलेला आहे त्याची जणू ही प्रतिकात्मक बाजू होती. लडाखने प्रकाशाकडे झेप घेतली असताना श्रीनगर मात्र चाचपडत होतं. घरी आलो तेव्हा टिव्हीवर बातमी होती श्रीनगर खोर्‍यातल्या सफरचंदाच्या बागेतून सरकारने थेट खरेदी चालवली असून तीन दिवसात बॅंक खात्यात पैसे जमा होत आहेत. आता तरी त्यांच्या डोक्यात प्रकाश पडूदे. उजाडूदे. लक्ख प्रकाश पडूदे.          

No comments:

Post a Comment

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails
 

Design in CSS by TemplateWorld and sponsored by SmashingMagazine
Blogger Template created by Deluxe Templates Tested Blogger Templates