12 November, 2015

अब जीना है


मंजिल इतनी दूर नही थी
जब मै निकला पाने को
हर चौबारा मुझे बुलाता  
मन नही करता जाने को ।

हर बार लडना और झगडना
खुदसे पंगा लेना था
फिक्र नही दुनियादारी की  
किसीसे कुछ नही पाना था ।

किया बसेरा जिस डालीपर
फिर छुटा उसका साथ
उपरवाली मंजिलपर जा बैठा
नही रहा कभी खाली हाथ ।

यह तो मिलनाही था दोस्तो
समय बित गया हातोहाथ
अब जीना है, जो भी बचता
और न करुंगा कोई बात।

नरेंद्र प्रभू

०८/११/२०१५ 

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